जो जुड़ी मुझसे एक और “मैं”

“मैं” कहाँ अब बन गया था “तू”
और इस “तू – मैं” में मिला ना कोई क्लू
वो मेरे दर पर दरोगा साहब को ले आए
कभी जो कहती थी “डार्लिंग” प्यार से
अब बदला लिवा रही है वो मार-धाड़ से
रिश्तों का उलझता ताना बना सुलझाते
थक चूका हूँ मैं अब इस बर्बादी से
तौबा करता हूँ मैं इस शादी से
अब डालेगी डकैती बनकर कुलक्ष्मी
कहाँ छुटकर जाऊं इस कोर्ट कचहरी से
लाइलाज बन चुकी हैं बीमारी अब 498 a
क्यों मेरे प्राणों की प्यासी बन चुकी हैं वो
की डार्लिंग क्यूँ खर्चती हो इतना सारा पैसा ?
मेरी आमंदनी है अट्ठन्नी और तुम खर्चती हो रुपईय्या
इतना कहने पर ही तुमने डूबा दी मेरे अरमानो की नईय्या
“आप”,” तुम” कहते करते कब बन गया ” मैं” से “तू”
बना गयी 498a ,dv, crpc 125 अब मेरे जीवन का सार
मुझसे ज्यादा तुझे है सच्चे इंसान की पहचान