तुम जी सकोगे कैसे, किसी को दुःख देकर ,
की तुम जी सकोगे कैसे, किसी को दुःख देकर
और मन में यह राज़ कैसे जीयोगे साथ लेकर
की ज़िन्दगी युही नहीं, बीत जाती है बिताने भर से,
अफ़साने छुप नहीं जाते, ज़माने से नज़रे चुरालेने में
अब तो गैरो की बाँहों में भी ले लेते होगे तुम पनहा
जला लेते होगे शाम ऐ महफ़िल में, अपनी कोई नयी शमा
अफ़सोस कुछ भी नहीं तेरे जीने के ढंग से मुझे
पर जलन है की, दर्द लेके भी, क्यूँ याद है तू मुझे
ज़िन्दगी में बस और कुछ नहीं चाहत तुझको लेकर
बस परवाह है उस शमा की जो होगी तेरी सेज पर
फिकर है उस ओज की जो बुझती होगी हर लम्हा
दुःख देकर जीए तू, क्यूँ होता नहीं खुद फ़ना