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Simple is Not Equal To Happy Anymore !

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Little things don’t make me happy

Things not Grand make me so snappy

I care about nothing less than Me

It doesn’t even matter to me who’s he

Everything big, fat and visible

Ostensibly grand but not divisible

I wish to own a one or more

fit enough to engage and allure

Screaming desires haunt my ego

life’s a waste if lived incognito

Nothing less than Grand will do

Am I or I am Greedy says Who ?

Please see, only the pretentious assure

Simple is not equal to happy anymore

Entire being goes into accumulation

Transgressing the path of renunciation

Written by
Shilpi C. Sinha

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Jap Tap Vrat : Bhakti

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तप में है बल                20120621_004

कुछ महीनो पूर्व मैं हरिद्वार गयी थी, जहाँ मुझे बहुत सुकून और राहत महसूस की, पवित्र गंगा जल में डूबकी लगाकर सूर्य देव को नमन कर मन में महसूस हुआ की शायद बरसो पुराने वक़्त के कर्मो की बुनी चादर जैसे बह गयी हो और उस जल धरा में  मेरे नए जीवन का संचार हुआ है ऐसा प्रतीत हुआ

 गंगा घाट पर बैठे दूर – दूर तक पानी ही पानी और इतना ठंडा जल शारीर के स्पर्श में आते ही सब गर्मी मानो चुरा ले गया हो और सब निराशा उड़ा ले रहा हो। सर से पैर तक तन में निर्मलता, स्वछता एवं शीतलता उत्पन्न हो गयी। 

गंगा जल का वेग बहुत ही तेज़ होता था मुझे लगा जैसे मेरे पैरो को घाट की सीडियों पर टिकाना बहुत मुश्किल होता जा रहा है ,पर मैंने तो निश्चय किया था की डुबकी लेनी है पैर से सर तक, पानी के भीतर होकर ही। और इसी दौरान शायद गंगा मैय्या को मेरी भक्ति इतनी पसंद आई की मेरे पाओ उठाकर वो चलने लगी, पर भला हो उन ज़ंजीरो का जिसकी वजह से आज मैं यहाँ बैठ कर लिख पा रही हूँ। 

 हरिद्वार में आरती देखने के  संग- संग भजन और जय कारे लगाने का अलग ही अनुभव होता है। शाम होते ही पानी में सब तरफ फूलो में सजे दीप बहुत सुन्दर लगते है , मैंने भी   दीप जलाये और हाथो से श्रद्धा के फूलो को उस पावन जल में प्रवाह किया। सच मे घाट पर बैठकर पैरो को पानी में डूबाये और उस शांत जल धारा के वेग को देखते रहना बहुत अच्छा लगता है।जगह जगह छोटी बड़ी पहाड़ियां और शिव भगवान की मूर्ति को देखते रहना और मनन करना अत्यनत सुखदाई अनुभव होता है। 

यह एहसास कुछ ही पलो का होता है, हालाँकि आपके और मेरे जीवन में ऐसे बहुत से सांसारिक एहसास होते होंगे या हो रहे होंगे, पर मैं जिस एहसास और अनुभव की बात कर  रही हूँ वो ज़िन्दगी में कुछ ही लोग पूर्ण कर पाते है। 

वो इसलिए की ज़रूरी नहीं की आप भगवन के दर्शन करना चाहेंगे तो कभी भी जा सकेंगे, क्यूंकि यह तभी मुमकिन है जब भगवन आपको दर्शन देने का बुलावा भेजे, नहीं तो इतने सालों से मेरी तीव्र इच्छा है की मैं माँ  वैष्णो देवी के दरबार जाऊं और माँ के दर्शन करू पर रूकावटे, अर्चने और कुछ निजी जीवन की समस्याए ऐसी है की मैं अब प्रतिज्ञा बद्ध हो गयीं हूँ हठ समझ लीजिये या जो कहिये, की जब मेरा विवाह संपन्न होगा मैं तभी दर्शन के लिए जाउंगी अपने जीवन साथी के साथ माँ के दरबार माँ के चरणों में। 

    यह सोचते -सोचते यह भी विचार आता है की “तप” की महिमा अंतहीन है,  क्यूंकि जिस गंग  के  जल में मुझे इतनी शान्ति और सुकून मिला, वो गंगा मैया के जल को धरती पर   लाने के लिए ऋषि  भागीरथ ने कितने वर्षो की तपस्या की जिसके पश्चात वह धरती पर आई और भगवन शिव ने उनके तेज़ वेग को सँभालने के लिए, उन्हें अपनी जटाओ में    धारण किया तब जाकर कहीं इस प्यासी धरती की प्यास भुजी, पापो का नाश हुआ और मृत जीवो और मनुष्यों को मुक्ति मिली। 

 सोचना सरल है पर निभाना बहुत कठिन, यह जप, तप एव भक्ति मामूली बातें नहीं, हर हफ्ते सोमवार, ब्रहस्पत्वार के व्रत हो या माता के नवरात्रे या एकादशी, शिवरात्रि या दुसरे विशेष व्रत, इनमे एक समय को तो ऐसा लगता है की पेट में लगी आग का क्या किया जाए, पर अन्दर से कुछ शक्ति मिलती रहती है जो व्रत को संपूर्ण करने में तन मन को नियंत्रित करती है जिससे मुझे तप की शक्ति पर विश्वास द्रढ़ हो जाता  है और यह समझने लगी हूँ की इस माया रुपी संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जो हम तप से प्राप्त ना कर सके।