कभी ना कभी हर Facebook User को ऐसा लगा होगा की बस अब और सहन नहीं किया जाता, बहुत हो गया यह दुसरो को देखना और अपना दिखावा करना ..
आज दिल कह रहा है की अपना Account Deactivate करदू !
आखिर कबतक यह ढोंग, यह झूठी चमक, यह हर वक़्त होने वाली कुछ ना कुछ हलचल का ब्योरा दुनिया को देते रहू आखिर कबतक ,थक गय हूँ बस अब , अब और कुछ लिया नहीं जाता कुछ किया भी नहीं जाता !
अपने अस्तित्व को मिटा- मिटा के फिर से सजाना अब और नहीं सुहाता मुझे, इस झूठी सुंदरता और झूठी शान से आजतक मैं अंदर से और खोखला ही हुआ हूँ, कहाँ से लाउ यह Awesome कहलाने वाले Events जो कभी घटित ही नहीं हुए, मेरी इस शांत और संपूर्ण ज़िन्दगी में, और क्यूं करू मैं अब उनकी झूठी रचना।
जब मुझे सुकून सिर्फ शांति से रहने में मिलता है तो क्यों करू यह बेफजूल का हो हल्लाह ! फोटो पर कुछ चंद likes
और comments
के लिए ! कोई कहीं Check In करता है तो कोई कहीं, किस जगह कौन कितनी मस्ती में रमा हुआ है क्या यह जानना इतना महत्वपूर्ण हो गया है !
पास ही रहने वाली उस वृद्ध औरत की बेबसी या सड़क के किनारे वह खोया हुआ रोता बच्चा हमारे मस्तिष्क के कुछ सेकंड का भी शायद ही हकदार बने, पर आज मिस X dinner के लिए किस फाइव स्टार होटल में गयी है हम कैसे भूल सकते है यह, इस बात पर एक like तो बनता है ना भाई !

Image courtesy of bplanet / FreeDigitalPhotos.net
इस ज़िन्दगी के दिखावे की दौड़ में खुद को आगे रखने के लिए यह सब अब ज़रूरी सा बन गया है, यह जताना की हम इसी पीढ़ी का हिस्सा है, और हम किसी भी बात में किसी से कम नहीं आजका main agenda बन चूका !
मुझे तो जन्मदिन, Anniversary, शादी , संगीत, party या कोई भी त्यौहार मनाने में वैसे भी अत्यंत आनंद आता है, पर उसी शन इस आनंद पर अंकुश सा लग जाता है जब कोई बोल दे “चलो एक फोटो हो जाए “, लाख मना करने पर भी तस्वीर ले ली जाती है और उसी शन Facebook पर upload भी कर दी जाती है , तभी से सब अपने smartphones में मगन हो जाते है और किसके कितने likes हुए उनकी गिनती में त्योहर का आनंद लेना भूल जाते है।
Cake में सना चेहरा या होली के रंगों में या कहिए की makeup के पाउडर में गोते लगाता हुआ सुन्दर लड़कियों का चेहरा , देखने में तो बहुत अच्छा लगता है पर अपना भी कुछ यह हाल होता ऐसा कभी – कभी मन में ख्याल आता है , यह सब देख कर ऐसा प्रतीत होता है की Facebook पर हम खुशियां बांट ते हैं, पर असल में ऐसा कुछ भी नहीं है, क्यूंकि मुझे लगता है कि जिस पल यदि कोई इंसान अपने मित्रो की खूबसूरत locations में हसीं पलो की photo देखता है वह उसी शन मन ही मन यह प्रण करलेता है की मैं भी इससे सौ गुना अधिक खूबसूरत और मस्त location में photo लगाउँगा अपना।
खुशियां तो दूर काफी लोगो के लिए खुदखुशी का मंच है यह social media, दुसरो को तकलीफ, competition को बढ़ावा ,सपनो की दुनिया और देखना- दिखावा ही अब इसको define करते हैं।
कौन क्या खाता है , क्या पहनता है, कहाँ छुट्टियां बिताता हैं, किधर रहता है , और दिन भर क्या – क्या करता है यही सब आजकल चलता है।
हम सबको अब इस बेहोशी में रहने की आदत सी हो गयी है, होश में तो आज कोई जीता ही नहीं शायद और जो है भी, उनसे हम कोसो दूर आ चुके है।
जीवन तो मात्र इन फालतू कामों के लिए ही सक्रिय रह गया है , बाकी सब तो अब निष्क्रिय हो चूका है, शायद इस बात का ध्यान हमे मृत्यु के समय या बुढ़ापे में महसूस हो जाये की हमने आजतक का अपना जीवन कितना व्यर्थहीन जिया , अपने कोमल हृदय और मन को कितनी बार कुंठित, विचलित और ब्र्हमित किया।
अभी तो केवल बेहोशी है क्यूंकि जागना हमे किसी ने सिखाया नहीं और ना ही सिखने जैसे कोई इच्छा जागी मन में।
भला सीखोगे भी कैसे जब सब का चश्मा
आज एक ही है तो नजरिया
भी एक जैसा ही होगा।
पर अगर यह समझ आ भी जाए की इस दिखावे की ज़िन्दगी में जिसमे हम घर, गाड़ी , मकान , दूकान, पैसा , power, position, promotion , प्यार
, इश्क़, मोहब्बत, show- sha बाज़ी को जीवन का उद्देेश्य समझ कर जीते आये है दरसल वह पूरा मिथ्या है ! यह जान जाने के बाद भी कितने लोग ऐसे जीवन को छोड़ सकेंगे। शायद कुछ ही।
इस मोह -माया के जंजाल से निकल पाने में बहुत सुविधा है पर खतरा भी है, की “अब हम वह नहीं कर रहे हैं जो सब कर रहे है” और शायद लोग फिर हमे पागल भी कहने लगेंगे, अब यह हम पर निर्भर करता है की पगला कहलाकर जीने में भलाई है या ऐसे जीवन मे लिपटकर पगला होकर जीने में !
मेरे ख्याल से पगला कहलाये जाने में कोई परेशानी नहीं है क्यूंकि ऐसा करके हम बुद्धत्व ( Buddhatva )के निकट आ पाते है।
यही तो परम सत्य है और जीवन का उद्देश्य भी की हम सबका लक्ष्य है बुद्धत्व ( Buddhatva ) को प्राप्त हो जाना , इस जीवन और मृत्यु के जाल से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होना। इसके परे जीवन का और कोई सत्य नहीं है सब तो माया है और इस माया में अटक गए है।
आज का जैसा जीवन है उसमे ध्यान में बैठने के लिए ही वर्षो का परिश्रम करना होगा और फिर मोक्ष प्राप्ति में तो कई जनम ही लग जायेंगे। इस अत्याधिक आधुनिक सुन्दर जीवन शैली में हम अपना अस्तीत्व खो चुके है और गहरी बेहोशी में जी रहे है। शायद किसी रोज़ हमे यह अनुभव हो जाए की भले ही science , technology और social life में हम आगे हो पर वास्तविक जीवन में हम काफी पीछे ही जी रहे है।
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