अकेला क्या दुखी कम था “मैं”जो जुड़ी मुझसे एक और “मैं”
“मैं” कहाँ अब बन गया था “तू”और इस “तू – मैं” में मिला ना कोई क्लू
जिसके ख्वाब देखे सपने सजायेवो मेरे दर पर दरोगा साहब को ले आएकभी जो कहती थी “डार्लिंग” प्यार सेअब बदला लिवा रही है वो मार-धाड़ से
दुखी, बेमन, बोझिल अंतरमन को संभालेरिश्तों का उलझता ताना बना सुलझातेथक चूका हूँ मैं अब इस बर्बादी से तौबा करता हूँ मैं इस शादी से
बनाकर लाया था जिसको मेरे घर की लक्ष्मीअब डालेगी डकैती बनकर कुलक्ष्मीकहाँ छुटकर जाऊं इस कोर्ट कचहरी सेलाइलाज बन चुकी हैं बीमारी अब 498 a
कोई समझाए मेरी प्राणप्रिय धरमपत्नी कोक्यों मेरे प्राणों की प्यासी बन चुकी हैं वो
सोचता हूँ क्यूँ कहा था कभी मैंने उसे ऐसा
की डार्लिंग क्यूँ खर्चती हो इतना सारा पैसा ?
मेरी आमंदनी है अट्ठन्नी और तुम खर्चती हो रुपईय्या
इतना कहने पर ही तुमने डूबा दी मेरे अरमानो की नईय्या
जो ना किया सितम उसपर तो मिली सज़ा फिर क्यूँ“आप”,” तुम” कहते करते कब बन गया ” मैं” से “तू”
मुझे फूलों की माला पहनाने वाली, मेरे जीवन का प्यारबना गयी 498a ,dv, crpc 125 अब मेरे जीवन का सार
क्यूँ जानकार सब बनती हैं अनजान
मुझसे ज्यादा तुझे है सच्चे इंसान की पहचान
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