बड़ी दूर दिखती है ज़िन्दगी की खुशियाँ
हमने जलाई हर पल गमो की लड़ियाँ
जाने कब किस दौर में ख़त्म होगा इंतज़ार
अब तो उम्र का हर मोड़ होता बेकरार
इन्तेहाँ हो चली सोचते सोचते यह बात
ज़िन्दगी की हर बाज़ी में क्यूँ खाई मात
ख़त्म हो चुका हर आस पर से विश्वास
जीने की तमन्ना भी नहीं आती अब रास
येही नियति है अगर, और है येही किस्मत
तो जानलो इसमें भी जी लुंगी मरते दम तक